सहरसा जेल में आनंद मोहन की आज अंतिम रात, समर्थकों में उत्साह

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बिहार के बाहुबली नेता आनंद मोहन की रिहाई के आदेश जारी हो गए हैं. यह आदेश उनके बेटे की सगाई के दिन आया. वह सगाई के लिए ही 15 दिन की पैरोल पर बाहर थे. मंगलवार को पैरोल खत्म होने पर सहरसा जेल जाएंगे. जेल की प्रक्रिया पूरी होने के बाद वह बुधवार को बाहर आ जाएंगे. रिहाई को लेकर सहरसा जेल प्रशासन ने कार्रवाई शुरू कर दी है. गोपालगंज डीएम जी कृष्णैया की 4 दिसंबर 1994 में मुजफ्फरपुर में हत्या हुई थी. इस हत्याकांड में आनंद मोहन को 2007 में उम्रकैद की सजा हुई थी. तब से वह जेल में हैं. जेल मैन्युअल के मुताबिक, उन्हें 14 साल की सजा पूरी करने के बाद परिहार मिल सकता था, लेकिन 2007 में जेल मैन्युअल में एक बदलाव की वजह से वह बाहर नहीं आ पा रहे थे. अब सरकार ने जेल से बाहर निकालने के लिए नियम बदल दिए. इसके बाद आनंद मोहन समेत 27 लोगों को सोमवार को रिहाई के आदेश जारी कर दिए गए. आनंद मोहन पर 3 और केस चल रहे हैं. इनमें उन्हें पहले से बेल मिल चुकी है. 
रिहाई पर मीडिया से बात करते हुए आनंद मोहन ने बिहार सरकार का शुक्रिया अदा किया. साथ ही यूपी की पूर्व सीएम मायावती को लेकर किए गए सवाल पर कहा कि मैं उन्हें नहीं जानता. बता दें कि मायावती ने आनंद मोहन की रिहाई पर नाराजगी जताते हुए इसे सरकार का दलित विरोधी फैसला बताया था. बिहार सरकार ने पूर्व सांसद की रिहाई को लेकर जेल नियमावली में बदलाव किया है. 10 अप्रैल को हुई कैबिनेट की बैठक में आनंद मोहन की रिहाई को लेकर फैसला लिया गया. कैबिनेट ने साल 2012 की नियमावली को संशोधित किया है. सरकार के इस फैसले पर कैबिनेट की मुहर तो लगी ही, उसी दिन गृह (कारा) विभाग ने संशोधन अधिसूचना भी जारी कर दी. इसके बाद सोमवार को उनकी रिहाई का आदेश जारी कर दिया गया. सोमवार की शाम आनंद मोहन के बेटे शिवहर विधायक चेतन आनंद की सगाई हुई है. सगाई के ही दिन आनंद मोहन की रिहाई का आदेश जारी किया गया. इस सगाई में मुख्यमंत्री नीतीश कुमार समेत बिहार के कई नेता शामिल हुए थे. सगाई की रस्में काफी धूम-धाम से हुई हैं. सगाई के दिन ही बिहार सरकार ने उन्हें रिहाई का बड़ा गिफ्ट दिया है. 
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आनंद मोहन को बेटे और राजद विधायक चेतन आनंद की सगाई को लेकर 15 दिनों की पैरोल मिली है. चेतन आनंद का 16 अप्रैल को जनेऊ, 24 अप्रैल को सगाई और तीन मई को देहरादून में शादी होने वाली है. बीते 6 महीने में तीसरी बार वो पैरोल पर सहरसा मंडल कारा से बाहर आए हैं. इससे पहले बेटी सुरभि आनंद की 7 नवंबर को सगाई थी, जिसको लेकर 5 नवंबर को वो पैरोल पर जेल से बाहर आए थे. 21 नवंबर को पैरोल खत्म होने के बाद वो फिर जेल गए थे. उसके बाद बेटी सुरभि की शादी को लेकर वो पांच फरवरी को फिर से पैरोल पर जेल से बाहर आए थे और शादी होने के बाद 21 फरवरी को फिर से उन्हें जेल भेज दिया गया था. सरकार ने 10 अप्रैल को बिहार कारा हस्तक, 2012 के नियम-481(i) (क) में संशोधन करके उस वाक्यांश को हटा दिया, जिसमें सरकारी सेवक की हत्या को शामिल किया गया था. इस संशोधन के बाद अब ड्यूटी पर तैनात सरकारी सेवक की हत्या अपवाद की श्रेणी में नहीं गिना जाएगा, बल्कि यह एक साधारण हत्या मानी जाएगी. इस संशोधन के बाद आनंद मोहन के परिहार की प्रक्रिया आसान हो गई, क्योंकि सरकारी अफसर की हत्या के मामले में ही आनंद मोहन को सजा हुई थी. 

गोपालगंज के जिलाधिकारी जी कृष्णैया की भीड़ ने पहले पिटाई, फिर गोली मारकर हत्या कर दी थी। आरोप लगा कि भीड़ को आनंद मोहन ने ही उकसाया था. अलग-अलग तर्कों का हवाला देकर आनंद मोहन की रिहाई की मांग सालों से की जा रही है. पटना के मिलर हाई स्कूल में 23 जनवरी को महाराणा प्रताप की पुण्यतिथि समारोह का आयोजन हुआ था। इसमें आनंद मोहन के समर्थकों की तरफ से उन्हें रिहा करने की मांग हुई. तब मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने भी इस संबंध में इशारा किया था. उन्होंने मंच से ही इस बात की घोषणा की कि वह आनंद मोहन की रिहाई के बारे में सोच रहे हैं. काम किया जा रहा है. तब उन्होंने कहा था कि आनंद मोहन हमारे मित्र रहे हैं. जब वह जेल गए थे, तो उनसे मिलने हम लोग गए थे. 5 दिसंबर 1994 को तत्कालीन गोपालगंज के डीएम जी कृष्णैया हाजीपुर से गोपालगंज लौट रहे थे. इसी दौरान मुजफ्फरपुर में आनंद मोहन के समर्थक डीएम की गाड़ी को देखते ही लोग उन पर टूट पड़े और उनकी हत्या कर दी. 

बताया जाता है कि ये सब आनंद मोहन के इशारे पर हो रहा था. घटना के 12 साल बाद 2007 में लोअर कोर्ट ने उन्हें दोषी ठहराते हुए फांसी की सजा सुनाई. आजाद भारत में यह पहला मामला था, जिसमें एक राजनेता को मौत की सजा दी गई थी. हालांकि, 2008 में हाईकोर्ट ने इस सजा को उम्र कैद में तब्दील कर दिया था. साल 2012 में आनंद मोहन इस मामले को लेकर सुप्रीम कोर्ट में सजा कम करने की अपील की. कोर्ट ने उनकी इस मांग को खारिज कर दिया था. 

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